Sunday, 21 September 2008
बेनाम रिश्ते
इतनी सारी मुलाकातों में ढेर सारी बातों में कुछ बातें बस अनकही सी किसी कोने में रह जाएँगी झिझकती शुरुआतों में हलकी सी बरसातों में कुछ बातें बस चुप सी आँखों से बह जाएँगी कल की हर सूरत को साथ हमारा गवारा नही कुछ बातें बेवजह सी बीच में दीवार बन जाएँगी फिर जब बिना मिले या कहे राहें जुदा हो जाएँगी कुछ बातें बस भूली सी धुंधली यादों में याद आयेंगी नाम को तरसते कुछ प्यारे रिश्ते अनकही बातों में चुप मुलाकातों में झिझकती बरसातों में भूली यादों में हाथों पे तुम्हारे कुछ लिख जायेंगे और तब शायद देर हो चुकी होगी
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